बीते दिनों को कभी याद न करना तुम,
जो हो गया उसके बारे में सोचके खुदको बर्बाद न करना तुम |
होनी को जो मंज़ूर था वोही तुम्हारे साथ हुआ,
इसीलिए दुखी होके, कभी न टूटके बैठना तुम |
वर्तमान पे ध्यान धरो, अतीत को न पकड़ना,
अतीत की बाहें थामली अगर तो भविष्य को होगा तुम्हे खोना |
जो आदमी अतीत को नहीं छोड़ता, वोह जीवन में असफल है होता,
उसकी जीवन एक अधूरी कहानी हे होती, जिसमे सिर्फ दुख है भरा होता |
इसीलिए मैं कहता हूँ की...
अपने आने वाले कल केलिए अपने आज को सवारों तुम,
अगर कल की बात लेके बैठ गए तो बादमे बैठके पछताओ तुम |
आज की ज़िन्दगी जीयो कल की न सोचो तुम,
हो चाहे वोह आने वाला या वोह जो है बीत गया,
क्योंकि बीते हुए को तो कोई नहीं बदल सकता
और आने वाले कल के बारे में कोई नहीं बता सकता |
- श्रवण
Sunday, December 4, 2011
Sunday, November 27, 2011
ISA classes की कहानियां - Part 2
२२/१० का दिन था, ISA Classes की शुरुआत थी,
कुछ नया हम अबसे सीखेंगे, दिल में ये उम्मीद थी |
हाथ में कलम और दिल में उम्मीद लिए पहुँच गए हम क्लास में,
सोचा था ज्यादा students नहीं होंगे, पर २८ लोग थे |
पहले दिन आये महेंद्र भाई, हाथ में IPad और गले में tie,
प्यारी सी मुस्कराहट थी, और अपनी बातों से सबको किया फ़िदा |
दिए मुफ्त के Software के tips और lunch break में हमे eclairs,
अपने आप की बहुत प्रशंसा की, नए technologies का हमें ज्ञान दिया |
उनके क्लास में मज़ा आया बहुत, पर बाद में ये एहसास हुआ,
पढ़ा कुछ नहीं रहे थे वोह, बस entertain हमें बहुत किया |
फिर आये Prashant Maali, जिनके सर का मैदान था बिकुल खाली,
हर फूल पर नज़र थी जिनकी, जैसे बगीचे का एक माली |
topic था उनका बहुत बोरिंग, पर उसमे जान डाली उन्होंने ,
हमें कहानी सुनके और लेके tests, exam केलिए तैयार किया|
फिर आई केटकर की बारी, इन्होने सबको bore किया,
अपनी बेकार presentation से हम सबको अँधा बना दिया |
इनके बारे में और कुछ कहूँगा नहीं, क्योंकि इस लायक नहीं है वो,
एक छोटी सी Question Bank देकर १०० रुपयों का नुक्सान करा दिया |
आखिर में थे सर्देस्साई, उनके चेहरे से ज्ञान टपक रहा था,
पर जब बोलने लगे तो एहसास हुआ की आवाज़ में बिलकुल दम न था |
बड़े ही सीधे साधे थे, और subject का knowledge था बहुत,
पर अपनी धीमी आवाज़ से उन्होंने सबको सुला दिया |
सोचने पर सबको मजबूर किया और exam approach पर tips दिए,
अंत में Seggragation of duties पे sixer मारके,
एकदम से class को जीत लिए |
ये थी कहानी ISA की, अब exam की बारी है |
सबका मज़ाक उड़ाया बहुत अब पिटने की हमारी बारी हैं |
- Shravan
कुछ नया हम अबसे सीखेंगे, दिल में ये उम्मीद थी |
हाथ में कलम और दिल में उम्मीद लिए पहुँच गए हम क्लास में,
सोचा था ज्यादा students नहीं होंगे, पर २८ लोग थे |
पहले दिन आये महेंद्र भाई, हाथ में IPad और गले में tie,
प्यारी सी मुस्कराहट थी, और अपनी बातों से सबको किया फ़िदा |
दिए मुफ्त के Software के tips और lunch break में हमे eclairs,
अपने आप की बहुत प्रशंसा की, नए technologies का हमें ज्ञान दिया |
उनके क्लास में मज़ा आया बहुत, पर बाद में ये एहसास हुआ,
पढ़ा कुछ नहीं रहे थे वोह, बस entertain हमें बहुत किया |
फिर आये Prashant Maali, जिनके सर का मैदान था बिकुल खाली,
हर फूल पर नज़र थी जिनकी, जैसे बगीचे का एक माली |
topic था उनका बहुत बोरिंग, पर उसमे जान डाली उन्होंने ,
हमें कहानी सुनके और लेके tests, exam केलिए तैयार किया|
फिर आई केटकर की बारी, इन्होने सबको bore किया,
अपनी बेकार presentation से हम सबको अँधा बना दिया |
इनके बारे में और कुछ कहूँगा नहीं, क्योंकि इस लायक नहीं है वो,
एक छोटी सी Question Bank देकर १०० रुपयों का नुक्सान करा दिया |
आखिर में थे सर्देस्साई, उनके चेहरे से ज्ञान टपक रहा था,
पर जब बोलने लगे तो एहसास हुआ की आवाज़ में बिलकुल दम न था |
बड़े ही सीधे साधे थे, और subject का knowledge था बहुत,
पर अपनी धीमी आवाज़ से उन्होंने सबको सुला दिया |
सोचने पर सबको मजबूर किया और exam approach पर tips दिए,
अंत में Seggragation of duties पे sixer मारके,
एकदम से class को जीत लिए |
ये थी कहानी ISA की, अब exam की बारी है |
सबका मज़ाक उड़ाया बहुत अब पिटने की हमारी बारी हैं |
- Shravan
ISA classes की कहानियां - Part 1
क्लास में आके भैठ गया हूँ, सोच रहा हूँ क्यों?
faculty कि ये सारी बातें सुन रहा हूँ क्यों?
जब उन्होंने Good Morning कहा उनकी आवाज़ से ही नींद आई मुझे,
और उनकी lecture सुनके ऐसा लगा कि लोरी सुना रहे हे मुझे |
'Mental torture' कि बात कर रहे हैं, कोई उनको समझाओ,
यह lecture लेके हमें mentally torture कर रहे हैं वो |
बीच में जब क्रिकेट का स्कोर देखा, तो अपने आप को कोसा मैंने बहुत,
१२९/७ था स्कोर West Indies का, match miss होने का गम हुआ बहुत |
बहुत सारे उधारण उन्होंने हमसे 'Share' किए,
बीच में चुटकुले सुनाने कि भी कोशिश की,
पर हसी आई नहीं, बलकी रोना आ गया मुझे |
मुझे तो ऐसा लगा की सिर्फ भूषण उनको सुन रहा था,
उनकी चुटकुले सुनकर वो एक ही था जो हस रहा था |
एक घंटा लोरी सुनाके, अभी कहा 'Lets start the class',
तो अब तक की ये फ़िज़ूल की बातें पता नहीं सुनाया क्यों?
'What is an information asset?' शायद हर faculty ने ये Question पुछा हे,
Question सुनके पक गया हूँ, Answer तो दूर की बात है |
अपना bike लेके आना चाहिए था, break में निकल जाता मैं,
कुरची पर बैठके सोने से बेहतर, घर पे आराम से match देखता मैं |
faculty कि ये सारी बातें सुन रहा हूँ क्यों?
जब उन्होंने Good Morning कहा उनकी आवाज़ से ही नींद आई मुझे,
और उनकी lecture सुनके ऐसा लगा कि लोरी सुना रहे हे मुझे |
'Mental torture' कि बात कर रहे हैं, कोई उनको समझाओ,
यह lecture लेके हमें mentally torture कर रहे हैं वो |
बीच में जब क्रिकेट का स्कोर देखा, तो अपने आप को कोसा मैंने बहुत,
१२९/७ था स्कोर West Indies का, match miss होने का गम हुआ बहुत |
बहुत सारे उधारण उन्होंने हमसे 'Share' किए,
बीच में चुटकुले सुनाने कि भी कोशिश की,
पर हसी आई नहीं, बलकी रोना आ गया मुझे |
मुझे तो ऐसा लगा की सिर्फ भूषण उनको सुन रहा था,
उनकी चुटकुले सुनकर वो एक ही था जो हस रहा था |
एक घंटा लोरी सुनाके, अभी कहा 'Lets start the class',
तो अब तक की ये फ़िज़ूल की बातें पता नहीं सुनाया क्यों?
'What is an information asset?' शायद हर faculty ने ये Question पुछा हे,
Question सुनके पक गया हूँ, Answer तो दूर की बात है |
अपना bike लेके आना चाहिए था, break में निकल जाता मैं,
कुरची पर बैठके सोने से बेहतर, घर पे आराम से match देखता मैं |
Tuesday, August 3, 2010
JANAMDIN PAR EK DOST KA PEGAAM
JANAMDIN KE IS SHUB MAUKE PAR
BHAGWAN SE YEH DUA KARTA HUN
KI DUNIYA BHAR KI SAARI KHUSHIYAN
AAPKE JEEVAN MEIN BHARDE WOH
KAAMIYAABI AAPKE KADAM CHOOME
AUR AAPKI ZINDAGI SAFAL HO
DOST-RISHTEDAARON KI SAARI DUAYE
HAMESHA AAPKE SAATH HO
AAPKA YEH IKKISWA SAAL
ZINDAGI MEIN NAYI RAUNAK LAAYE
AAPKE DIL KI HAR EK MURAAD
IS NAYE SAAL MEIN POORA HO JAAYE
AAPKE DOSTI NE JAISE
SABKE JEEVAN MEIN RAUNAK BHARDI
WAISE HI AAPKE JEEVAN MEIN
KHUSHIYON KA BHAUCHAR HO
AUR AAPKI YEH MUSKURAHAT
HAMESHA BARKARAR HO
BY
SHRAVAN SWARUP
JANAMDIN KE IS SHUB MAUKE PAR
BHAGWAN SE YEH DUA KARTA HUN
KI DUNIYA BHAR KI SAARI KHUSHIYAN
AAPKE JEEVAN MEIN BHARDE WOH
KAAMIYAABI AAPKE KADAM CHOOME
AUR AAPKI ZINDAGI SAFAL HO
DOST-RISHTEDAARON KI SAARI DUAYE
HAMESHA AAPKE SAATH HO
AAPKA YEH IKKISWA SAAL
ZINDAGI MEIN NAYI RAUNAK LAAYE
AAPKE DIL KI HAR EK MURAAD
IS NAYE SAAL MEIN POORA HO JAAYE
AAPKE DOSTI NE JAISE
SABKE JEEVAN MEIN RAUNAK BHARDI
WAISE HI AAPKE JEEVAN MEIN
KHUSHIYON KA BHAUCHAR HO
AUR AAPKI YEH MUSKURAHAT
HAMESHA BARKARAR HO
BY
SHRAVAN SWARUP
Wednesday, June 2, 2010
The Indian Cricket Saga……
The Indian Cricket Saga……
“The Players don’t have the technique to face the short ball….
The Players are not fit enough; they are overweight and love partying….
The Captain had not fielded the best playing eleven…”
These are some of the reasons given by some the senior cricketers for the Indian teams’ dismal performance in the T20 world cup. But I have a couple of questions…
How many players in the Indian Squad were selected because of their technique?
How many players were selected for their consistency?
Sadly the answer to these questions is ‘NONE’. The Indian cricket team selection was never based on good technique or consistency. If that were the criteria then most of the members of the squad (be it ODI, Test ot T20) would not find place in the team.
What all of India wants are big hitting entertainers who, on a flat track or against an average attack, can tear apart the opposition. Not just the selectors even the public and media is of the same view. The day the selectors decide to take the right moves effigies are burnt, there are protests on the street, questions about bias start rising. That is the sad story of Indian Cricket.
A Rahul Dravid never gets the due credit for his technique or consistency. It’s the Entertainers who are piled up with accolades. There are so many players waiting in the wings with good technique but are always overlooked because they do not tear apart an opposition on a flat track but instead choose to play second fiddle to some batsmen with no technique whatsoever who can on his day (which is rarity) be destructive.
As far as bowling goes. People are always commenting on the lack of players who can bowl fast. Wake up!!! Barring Harbhajan We don’t have a good spinner as well. Reason I attribute again to the importance given to hard hitting batsmen. No one wants to be a Rahul Dravid or a Anil Kumble because they have seen that a big heart and quality performances are not given the due respect in India. All that the selection committee, media and the Indian Audience want to see is hard hitting batting. Bowling is given a back seat. Again that’s the sad story of Indian cricket.
That’s why we had the rebel league in India which has lead to some quality players like Ambati Raydu, A. Jhunjunwala, T.P. Singh, Ali Murtaza lose favour amongst the selectors. I don’t see any of them featuring even in the Indian A Team. That again is the sad story of Indian cricket.
Well that’s it from me today…. Will be back soon with some more ‘Hard Hitting’ comments…
“The Players don’t have the technique to face the short ball….
The Players are not fit enough; they are overweight and love partying….
The Captain had not fielded the best playing eleven…”
These are some of the reasons given by some the senior cricketers for the Indian teams’ dismal performance in the T20 world cup. But I have a couple of questions…
How many players in the Indian Squad were selected because of their technique?
How many players were selected for their consistency?
Sadly the answer to these questions is ‘NONE’. The Indian cricket team selection was never based on good technique or consistency. If that were the criteria then most of the members of the squad (be it ODI, Test ot T20) would not find place in the team.
What all of India wants are big hitting entertainers who, on a flat track or against an average attack, can tear apart the opposition. Not just the selectors even the public and media is of the same view. The day the selectors decide to take the right moves effigies are burnt, there are protests on the street, questions about bias start rising. That is the sad story of Indian Cricket.
A Rahul Dravid never gets the due credit for his technique or consistency. It’s the Entertainers who are piled up with accolades. There are so many players waiting in the wings with good technique but are always overlooked because they do not tear apart an opposition on a flat track but instead choose to play second fiddle to some batsmen with no technique whatsoever who can on his day (which is rarity) be destructive.
As far as bowling goes. People are always commenting on the lack of players who can bowl fast. Wake up!!! Barring Harbhajan We don’t have a good spinner as well. Reason I attribute again to the importance given to hard hitting batsmen. No one wants to be a Rahul Dravid or a Anil Kumble because they have seen that a big heart and quality performances are not given the due respect in India. All that the selection committee, media and the Indian Audience want to see is hard hitting batting. Bowling is given a back seat. Again that’s the sad story of Indian cricket.
That’s why we had the rebel league in India which has lead to some quality players like Ambati Raydu, A. Jhunjunwala, T.P. Singh, Ali Murtaza lose favour amongst the selectors. I don’t see any of them featuring even in the Indian A Team. That again is the sad story of Indian cricket.
Well that’s it from me today…. Will be back soon with some more ‘Hard Hitting’ comments…
वाह ज़िन्दगी…
वाह ज़िन्दगी…
एक तरफ दिल की आवाज़ तो दूसरी तरफ लोगों की पुकार हैं…
एक तरफ अपनी खुशी तो दूसरी तरफ अपनों का साथ हैं..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
मंजिल सामने है, पर जा नहीं पा रहा हूँ मैं..
क्या चाहिए मुझे, ये तै नहीं कर पा रहा हूँ मैं..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
अपना कौन पराया कौन कुछ समझ आता नहीं..
किसकी सुनु और किसकी नहीं, ये मुझे पता नहीं..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
सभी अपने ही दिखते हैं.. सभी भला ही चाहते हैं..
पर कोई नहीं ये सोचता की मेरा दिल क्या चाहता हैं…
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
यार मिलते भी हैं, तो भिछडने केलिए..
खुशिया देती भी हैं तो, कुछ ही समय केलिए..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
क्या करूँ क्या न करूँ कुछ समझ आता नहीं..
रास्ता दिखाने वाला कोई नज़र आता नहीं..
ज़िन्दगी यह मेरा एक चर्कव्युह बन गया हैं..
जिसका तोड़ मुझे, कहीं नज़र आता नहीं..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
---------------------------
श्रवण स्वरुप
एक तरफ दिल की आवाज़ तो दूसरी तरफ लोगों की पुकार हैं…
एक तरफ अपनी खुशी तो दूसरी तरफ अपनों का साथ हैं..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
मंजिल सामने है, पर जा नहीं पा रहा हूँ मैं..
क्या चाहिए मुझे, ये तै नहीं कर पा रहा हूँ मैं..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
अपना कौन पराया कौन कुछ समझ आता नहीं..
किसकी सुनु और किसकी नहीं, ये मुझे पता नहीं..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
सभी अपने ही दिखते हैं.. सभी भला ही चाहते हैं..
पर कोई नहीं ये सोचता की मेरा दिल क्या चाहता हैं…
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
यार मिलते भी हैं, तो भिछडने केलिए..
खुशिया देती भी हैं तो, कुछ ही समय केलिए..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
क्या करूँ क्या न करूँ कुछ समझ आता नहीं..
रास्ता दिखाने वाला कोई नज़र आता नहीं..
ज़िन्दगी यह मेरा एक चर्कव्युह बन गया हैं..
जिसका तोड़ मुझे, कहीं नज़र आता नहीं..
वाह ज़िन्दगी.. तू भी कितनी अजीब है…
---------------------------
श्रवण स्वरुप
Monday, May 31, 2010
ज़िन्दगी का सफ़र
ज़िन्दगी का सफ़र
सफ़र पर हम निकल पड़े हैं, मंजिल का मगर पता नहीं |
चौरास्ते पर आके रुक गए है, सही राह हमें पता नहीं |
ऐसी ही दुविधा से हर कोई है गुज़रता |
ज़िन्दगी से आखिर हासिल करना है क्या
ये किसी को भी पता नहीं |
चौरास्ते पर होते है चार मोड़,
एक, जो दिल की मंजिल तक ले जाता है,
एक, जो दिमाग की बात सुन लेता है,
एक, जो दुनिया के कहने पर चलता है,
और, आखरी जो पीठ दिखाके भाग लेता है |
नसीब वाला हे वोह इंसान जिसे चुन्ने की कोई ज़रुरत नहीं |
एक सीदा रास्ता हो, कहीं कोई मोड़ नहीं |
पर ऐसी परिस्थितिया तो सिर्फ कल्पनाओ में संभव है,
वास्तव मे ऐसा रास्ता मैंने तो कभी देखा नहीं |
क्या किसीने कभी सोचा है की ज़िन्दगी के राह कि मंजिल आखिर हे, तो वो हे क्या?
ये सफ़र कब होता हे खतम?
और मौत इसकी आखरी मंजिल हे क्या?
मेरा तो ये मानना हे -
मौत मंजिल का अंत है, सफ़र कि आखरी मंजिल नहीं |
और मंजिल कि शुरुवात होती है तब, जब रास्ते मे कोई मोड़ बचे नहीं |
अर्थात
मंजिल का मतलब ये नहीं की रास्ता समाप्त हो जाता है |
मंजिल का मतलब ये है की हमें अब चुनने की ज़रुरत नहीं और,
चैन की ज़िन्दगी बिताके चैन से मर सकते हैं वहीँ |
श्रवण स्वरुप
सफ़र पर हम निकल पड़े हैं, मंजिल का मगर पता नहीं |
चौरास्ते पर आके रुक गए है, सही राह हमें पता नहीं |
ऐसी ही दुविधा से हर कोई है गुज़रता |
ज़िन्दगी से आखिर हासिल करना है क्या
ये किसी को भी पता नहीं |
चौरास्ते पर होते है चार मोड़,
एक, जो दिल की मंजिल तक ले जाता है,
एक, जो दिमाग की बात सुन लेता है,
एक, जो दुनिया के कहने पर चलता है,
और, आखरी जो पीठ दिखाके भाग लेता है |
नसीब वाला हे वोह इंसान जिसे चुन्ने की कोई ज़रुरत नहीं |
एक सीदा रास्ता हो, कहीं कोई मोड़ नहीं |
पर ऐसी परिस्थितिया तो सिर्फ कल्पनाओ में संभव है,
वास्तव मे ऐसा रास्ता मैंने तो कभी देखा नहीं |
क्या किसीने कभी सोचा है की ज़िन्दगी के राह कि मंजिल आखिर हे, तो वो हे क्या?
ये सफ़र कब होता हे खतम?
और मौत इसकी आखरी मंजिल हे क्या?
मेरा तो ये मानना हे -
मौत मंजिल का अंत है, सफ़र कि आखरी मंजिल नहीं |
और मंजिल कि शुरुवात होती है तब, जब रास्ते मे कोई मोड़ बचे नहीं |
अर्थात
मंजिल का मतलब ये नहीं की रास्ता समाप्त हो जाता है |
मंजिल का मतलब ये है की हमें अब चुनने की ज़रुरत नहीं और,
चैन की ज़िन्दगी बिताके चैन से मर सकते हैं वहीँ |
श्रवण स्वरुप
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